बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा के साथ ही राज्य की सियासत अपने चरम पर पहुँच गई है। सभी प्रमुख राजनीतिक दल मैदान में उतर चुके हैं और जनता को अपने पक्ष में करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इस बार का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं, बल्कि जनता के भरोसे और राजनीतिक नैतिकता की सबसे बड़ी परीक्षा बनने जा रहा है। चुनाव आयोग ने निष्पक्ष और पारदर्शी मतदान सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। राज्यभर में निगरानी दल, फ्लाइंग स्क्वाड और विशेष पर्यवेक्षक तैनात किए गए हैं, ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी को तुरंत रोका जा सके। इससे मतदाताओं में भरोसे का माहौल बनता दिख रहा है।
राजनीतिक मोर्चे पर गठबंधनों के बीच सीट बंटवारे को लेकर अभी भी खींचतान जारी है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही अपने-अपने उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। वहीं, नई पार्टियों और स्वतंत्र उम्मीदवारों के उतरने से मुकाबला और दिलचस्प बन गया है। राज्य में बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी विकास जैसे मुद्दे इस बार के चुनाव का केंद्र बन गए हैं। युवा वर्ग बदलाव की उम्मीद लेकर राजनीतिक दलों से ठोस योजनाएँ मांग रहा है। जनता अब केवल नारों या वादों से नहीं, बल्कि काम के आधार पर वोट देने का मन बना चुकी है।
यह चुनाव बिहार के लिए एक नए युग की शुरुआत हो सकता है – जहाँ जनता तय करेगी कि सत्ता किसके हाथों में होगी और राज्य की दिशा किस ओर मुड़ेगी।
सीट बंटवारे पर सस्पेंस – दोनों गठबंधनों में खींचतान जारी
बिहार के दो प्रमुख गठबंधन – एनडीए (NDA) और महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) – अभी भी सीट बंटवारे को लेकर सहमति तक नहीं पहुंच पाए हैं।
एनडीए की ओर से भाजपा ने अपनी चुनाव समिति की बैठक में लगभग 110 संभावित उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा की, जबकि जेडीयू और हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) ने सीटों के अनुपात को लेकर असंतोष जताया।
दूसरी ओर, महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस के बीच भी सीट बंटवारे की जंग जारी है। कांग्रेस अपनी केंद्रीय चुनाव समिति के माध्यम से नाम तय करने की तैयारी में है, पर अभी भी कई सीटों पर टकराव बरकरार है। यह स्थिति बताती है कि गठबंधन की राजनीति इस बार पहले से ज्यादा कठिन हो सकती है।
चुनाव आयोग की सख़्ती – 824 फ्लाइंग स्क्वाड मैदान में
चुनाव आयोग ने निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं।
राज्यभर में 824 फ्लाइंग स्क्वाड तैनात किए गए हैं, जो हर स्तर पर आचार संहिता उल्लंघन की निगरानी करेंगे। साथ ही, 470 केंद्रीय पर्यवेक्षक भी तैनात किए जा रहे हैं ताकि मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे। पटना समेत प्रमुख जिलों में सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत किया गया है सीसीटीवी कैमरे, स्थायी गश्त दल और विशेष निगरानी इकाइयाँ सक्रिय हैं।
यह पहली बार है जब इतनी बड़ी संख्या में टीमें चुनाव प्रक्रिया पर नज़र रख रही हैं।
सीमांचल की सियासत में नया विवाद -Bangladeshi infiltrator बयान से हलचल
बिहार के सीमांचल क्षेत्र में हाल ही में एक बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया। शेरशाहबादी मुस्लिम समुदाय को Bangladeshi infiltrators कहने की टिप्पणी के बाद इस समुदाय में नाराज़गी देखी गई। कई राजनीतिक दलों ने इसे चुनावी ध्रुवीकरण का प्रयास बताया और प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की।
वहीं भाजपा के कुछ नेताओं ने इस बयान को सीमा सुरक्षा से जोड़कर जायज़ ठहराने की कोशिश की। यह प्रकरण बताता है कि आने वाले चुनाव में जातीय और धार्मिक पहचान का मुद्दा फिर से केंद्र में आ सकता है, ख़ासकर सीमांचल जैसे संवेदनशील इलाकों में।
दलों की आपसी तनातनी – आरोप-प्रत्यारोप तेज़
8 अक्टूबर को राज्य की राजनीति में कई मोर्चों पर बयानबाज़ी चरम पर रही।
– RJD ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अधिकारियों के तबादलों पर आपत्ति जताई, यह कहते हुए कि चुनाव से ठीक पहले ऐसे ट्रांसफर निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं।
– हम पार्टी के नेता जीतनराम मांझी ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा, हो न्याय अगर तो आधा दो, और भाजपा को दुर्योधन बताकर गठबंधन के भीतर असंतोष जाहिर किया।
– दूसरी ओर, AIMIM ने सीमांचल में अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया, जिससे महागठबंधन के मुस्लिम वोट बैंक पर असर पड़ सकता है। यह राजनीतिक बयानबाज़ी दिखाती है कि बिहार में गठबंधन की एकजुटता अभी कमजोर स्थिति में है।
दलित संगठन का 20 बिंदुओं वाला एजेंडा –पार्टियों पर दबाव
चुनाव से पहले एक प्रमुख दलित संगठन ने सभी राजनीतिक दलों को 20 बिंदुओं की मांग सूची सौंपी है। इसमें दलित शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा, भूमि सुधार और आरक्षण से जुड़ी मांगें प्रमुख हैं। संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर पार्टियाँ इन मांगों को अपने घोषणा-पत्र में शामिल नहीं करतीं, तो वे अपने मतदाताओं से विकल्प चुनने की अपील करेंगे। यह दलित राजनीति की बढ़ती जागरूकता का संकेत है, और यह तबका अब सिर्फ वोट बैंक नहीं बल्कि नीतिगत भागीदारी की अपेक्षा कर रहा है।
पाँच बड़े फैक्टर जो तय करेंगे बिहार का नतीजा
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार चुनाव में पांच ऐसे निर्णायक मुद्दे हैं जो परिणामों को सीधे प्रभावित करेंगे ।
- मोदी-नीतीश फैक्टर – केंद्र और राज्य की दोहरी छवि का असर।
- मुस्लिम वोटों का विभाजन – AIMIM और अन्य पार्टियों की सक्रियता से असर संभव।
- प्रशांत किशोर की एंट्री – जन सुराज के रूप में तीसरे विकल्प की संभावना।
- भ्रष्टाचार और घोटाले – विपक्ष इन मुद्दों को लेकर आक्रामक रहेगा।
- विकास योजनाओं की पहुंच – बिजली, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे निर्णायक बन सकते हैं।
इनमें से किसी भी फैक्टर में हल्का सा झुकाव पूरे समीकरण को बदल सकता है।
जनता का मूड –अब नारे नहीं, नतीजे चाहिए
बिहार का मतदाता अब पहले से कहीं ज्यादा जागरूक है। सोशल मीडिया और स्थानीय जागरूकता अभियानों ने जनता को मुद्दों पर सोचने के लिए प्रेरित किया है। अब जाति या धर्म से ज्यादा रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार-मुक्त शासन पर चर्चा हो रही है।
युवा वर्ग यह तय करेगा कि कौन वादे करता है और कौन उन्हें निभाता है। जनता का यह बदला हुआ रवैया इस चुनाव की दिशा तय करने में निर्णायक साबित हो सकता है।
सियासी पारा चढ़ा, लेकिन फैसला जनता के हाथ
बिहार की राजनीतिक फिज़ा अब पूरी तरह चुनावी रंग में रंग चुकी है। हर दल जनता को लुभाने की कोशिश में है, लेकिन इस बार माहौल अलग है – मतदाता अब केवल भावनाओं से नहीं, बल्कि नीतियों और प्रदर्शन से प्रभावित होगा। गठबंधनों की अंदरूनी दरारें, नए चेहरे और चुनाव आयोग की सख़्ती इस चुनाव को पहले से कहीं ज़्यादा दिलचस्प बना रही हैं। आख़िर में, वही तय करेगा जिसके पास जनता का भरोसा और विकास की सच्ची योजना होगी।